आके क़ासिद ने कहा जो, वही अकसर निकला। नामाबर समझे थे हम, वह तो पयम्बर निकला॥ बाएगु़रबत कि हुई जिसके लिए खाना-खराब। सुनके आवाज़ भी घर से न वह बाहर निकला॥ ****