अलअमाँ मेरे ग़मकदे की शाम। सुर्ख़ शोअ़ला सियाह हो जाये॥ पाक निकले वहाँ से कौन जहाँ । उज़्रख़्वाही गुनाह हो जाये॥ इन्तहाये-करम वो है कि जहाँ। बेगुनाही गुनाह हो जाये॥ ****