जो दर्द मिटने-मिटते भी मुझको मिटा गया। क्या उसका पूछना कि कहाँ था कहाँ न था॥ अब तक चारासाज़िये-चश्मेकरम है याद। फाहा वहाँ लगाते थे, चरका जहाँ न था॥ ****