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Jigar Moradabadi
 
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* कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे *
कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे 
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे 

ईमान-ओ-कुफ़्र और न दुनिया-ओ- दीं  रहे 
ऐ इश्क़ !शादबाश  कि तनहा हमीं रहे 

या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो 
दस्त-ए-जुनूँ रहे न रहे आस्तीं रहे 

जा और कोई ज़ब्त की दुनिया तलाश कर 
ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे 

मुझ को नहीं क़ुबूल दो आलम की वुस'अतें 
क़िस्मत में कू-ए-यार  की दो ग़ज़ ज़मीं रहे 

दर्द-ए-ग़म-ए-फ़िराक़  के ये सख़्त- मरहले[
हैरां हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे 

इस इश्क़ की तलाफ़ी-ए-माफ़ात देखना 
रोने की हसरतें हैं जब आँसू नहीं रहे
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