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Jigar Moradabadi
 
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* नियाज़-ओ-नाज़ के झगड़े मिटाये जातí *
नियाज़-ओ-नाज़ के झगड़े मिटाये जाते हैं 
हम उन में और वो हम में समाये जाते हैं 

ये नाज़-ए-हुस्न तो देखो कि दिल को तड़पाकर 
नज़र मिलाते नहीं मुस्कुराये जाते हैं 

मेरे जुनून-ए-तमन्ना का कुछ ख़याल नहीं 
लजाये जाते हैं दामन छुड़ाये जाते हैं 

जो दिल से उठते हैं शोले वो अंग बन-बन कर 
तमाम मंज़र-ए-फ़ितरत पे छये जाते हैं 

मैं अपनी आह के सदक़े कि मेरी आह में भी 
तेरी निगाह के अंदाज़ पाये जाते हैं 

ये अपनी तर्क-ए-मुहब्बत भी क्या मुहब्बत है 
जिन्हें भुलाते हैं वो याद आये जाते हैं
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