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Jigar Moradabadi
 
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* न ताबे-मस्ती न होशे-हस्ती कि शुक्र *
न ताबे-मस्ती न होशे-हस्ती कि शुक्रे-ने’मत अदा करेंगे
ख़िज़ाँ में जब है ये अपना आलम बहार आई तो क्या करेंगे

हर एक ग़म को फ़रोग़ देकर यहाँ तक आरस्ता करेंगे
वही जो रहते हैं दूर हमसे ख़ुद अपनी आग़ोश वा करेंगे

जिधर से गुज़रेंगे सरफ़रोशाना-कारनामे सुना करेंगे
वो अपने दिल को हज़ार रोकें मिरी मोहब्बत का क्या करेंगे

न शुक्रे-ग़म ज़ेरे-लब करेंगे, न शिक्वा-ए-बरमला करेंगे
जो हमपे गुज़रेगी दिल ही दिल में कहा करेंगे सुना करेंगे

ये ज़ाहिरी जल्वा-हाय रंगीं फ़रेब कब तक दिया करेंगे
नज़र की जो कर सके न तस्कीं वो दिल की तस्कीन क्या करेंगे

वहाँ भी आहें भरा करेंगे, वहाँ भी नाले किया करेंगे
जिन्हें है तुझसे ही सिर्फ़ निस्बत वो तेरी जन्नत का क्या करेंगे

नहीं है जिनको मजाले-हस्ती सिवाए इसके वो क्या करेंगे
कि जिस ज़मीं के हैं बसने वाले उसे भी रुस्वा किया करेंगे

हम अपनी क्यों तर्ज़े-फ़िक्र छोड़ें हम अपनी क्यों वज़अ़-ख़ास  बदलें
कि इन्क़िलाबाते-नौ-ब-नौ  तो हुआ किए हैं हुआ करेंगे

ये सख़्ततर इश्क़ के मराहिल ये हर क़दम पर हज़ार एहसाँ
जो बच रहे तो जुनुँ के हक़ में जिएँगे जब तक दुआ करेंगे

ये ख़ामकाराने- इश्क़ सोचें ये शिक्वा-संजाने-हुस्न समझें
कि ज़िन्दगी ख़ुद हसीं न होगी तो फिर तवज्जुह वो क्या करेंगे

ख़ुद अपने ही सोज़े -बातिनी से निकाल इक शम्ए-ग़ैर-फ़ानी
चिराग़े दैरो-हरम तो ऐ दिल जला करेंगे बुझा करेंगे
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