donateplease
newsletter
newsletter
rishta online logo
rosemine
Bazme Adab
Google   Site  
Bookmark and Share 
design_poetry
Share on Facebook
 
Jigar Moradabadi
 
Share to Aalmi Urdu Ghar
* शायर-ए-फ़ितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फ़ *
शायर-ए-फ़ितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फ़र्माता हूँ मैं 
रूह बन कर ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं 

आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं 
जैसे हर शै में किसी शै की कमी पाता हूँ मैं 

जिस क़दर अफ़साना-ए-हस्ती को दोहराता हूँ मैं 
और भी बेग़ाना-ए-हस्ती हुआ जाता हूँ मैं 

जब मकान-ओ-लामकाँ सब से गुज़र जाता हूँ मैं 
अल्लाह-अल्लाह तुझ को ख़ुद अपनी जगह पाता हूँ मैं 

हाय री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिये 
मुझ को समझाते हैं वो और उन को समझाता हूँ मैं 

मेरी हिम्मत देखना मेरी तबीयत देखना 
जो सुलझ जाती है गुत्थी फिर से उलझाता हूँ मैं 

हुस्न को क्या दुश्मनी है इश्क़ को क्या बैर है 
अपने ही क़दमों की ख़ुद ही ठोकरें खाता हूँ मैं 

तेरी महफ़िल तेरे जल्वे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर 
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं 

वाह रे शौक़-ए-शहादत कू-ए-क़ातिल की तरफ़ 
गुनगुनाता रक़्स करता झूमता जाता हूँ मैं 

देखना उस इश्क़ की ये तुर्फ़ाकारी देखना 
वो जफ़ा करते हैं मुझ पर और शर्माता हूँ मैं 

एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ "ज़िगर" 
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं
****
 
Comments


Login

You are Visitor Number : 357