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Jigar Moradabadi
 
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* यही है सबसे बढ़कर महरमे-असरार हो ज *
यही है सबसे बढ़कर महरमे-असरार हो जाना
मयस्सर हो अगर अपना हमें दीदार हो जाना

महब्बत में कहाँ मुमकिन  जलीलो-ख़्वार हो जाना
कि पहली शर्त है इन्सान का ख़ुद्दार  हो जाना

खुलेगा चारागर पर राज़े-ग़म क्या दर्द के होते
कि आता है इसे ख़ुद नब्ज़ की रफ़्तार हो जाना

विसालो-हिज्र के झगड़ों फ़ुर्सत ही न दी वर्ना
मआले-अशिक़ी था रूह का बेदार  हो जाना

ज़बाँ गो चुप हुई, दिल में तलातुम है वही बर्पा
न आया आज तक मह्वे-ख़्याले-यार  हो जाना
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