* तुहार लिखावट सूरज के सतरंगीन किर *
तुहार लिखावट
सूरज के सतरंगीन किरण जईसे
लुढ़कत चले आवत हे
तन मन के दुआरी ले
औउ कभू खिड़की ले
मोर स्तित्व ला उजियार कर देथे
अब मैं तोर जाये के बाद
धूप म बईठना बंद कर दे हव
धूप तो अब मोर संगवारी होगे -----------!
(खुर्शीद हयात :०८:१० २५/०२/१२ )
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