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Khurshid Hayat
 
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* ए जिंदगी मुझ से आ कर मिल > खुर्शीद हय& *
ए जिंदगी !
मुझ से
आ कर मिल.
अलग अलग जिंदगी रंग
लफ्ज़ चेहरों में लिपटी हुयी
तू जब जब चौराहे पर मिली
मैं और निखरती गयी , संवरती गयी
कभी मीरा का जूनून
मेरे लफ्ज़ बने
कभी सुर के सुरों में ढलने लगे
लफ्ज़ कभी सुर
कभी तुलसी कभी मीरा बने
मगर लफ्ज़
लफ्ज़ के न हुए
तुम ने अपना दर खुला रखा था
झीनी बीनी खिडकियों से
अन्दर आने वाली हवाओं ने
मुझे कभी जगाया
कभी थपकियाँ दे कर सुला दिया
ऐ जिंदगी !
तू मुझ से
यूँ ही मिलती रहा करो
भूकंप जैसे झटके भी देती रहा करो
यही तो तहरीर चेहरा को
ऐतबार दे जाते हैं
बगिया की जोबन बना देते हैं
नई इबारत लिख जाते हैं
वजूद की तख्ती पर !
ए मेरी जिंदगी !
तुम हो तो ये दर्पण हैं
तुम नहीं
दर्पण नहीं .
तुम हो तो चौराहे हैं
चौराहे पर
सीधी और सच्ची राह की बाँहें हैं
सदायें हैं ......
ए जिंदगी तू मुझ से आ कर मिल !
(खुर्शीद हयात )
 
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