|
* मेरे बगिया की जोबन *
मेरे बगिया की जोबन
शाम की हर आहट ने फिर से
तुम्हारी नर्म उँगलियों से बुनी
रेशमी नीले धागे की चदरिया से
मेरे चेहरे को ढांप दिया है
और मैं सोच रहा हूँ
मेरे लावारिस की तरह बिखरे हुए बाल
कितने ख़ूबसूरत हो गए हैं
मेरा आधा अधूरा जिस्म
आधी अधूरी जिंदगी
कितनी हसीं हो गयी
दबी दबी सी मुस्कुराहटें
और भी शबनमी हो गयीं
आज जब मैं ने तुम्हें
दीवार से लिपटी उस पेंटिंग में
ढूँढना चाहा
जिसे तुम ने बनाया था
"सूर्य की सतरंगी किरणें
और सूर्य मुखी !"
मेरे बगिया की जोबन !
दीवारों पर आज
कोई निशानी बाकी नहीं
वो शब्द जिन में मेरी रूह बसा करती है
मेरे अन्दर शोर कर रहे थे
तभी दीवार से सदा आई
तुम मुझे तलाश करो
"आशियाने "में
उन दीवारों में क्यों ढूँढ़ते हो
जो न मेरा है , न तेरा ...
सात दरवाज़े
सात खिड़कियाँ
तुम्हारी सखियाँ
करो हर दिन
उनसे नई नई बतियाँ
सात दरवाज़े
सात खिड़कियाँ
यही हैं तुम्हारी नई सखियाँ ...
(खुर्शीद हयात -२७ १०-११ ) |
|