* इक नशा सा ज़हन पर छाने लगा *
इक नशा सा ज़हन पर छाने लगा
आपका चेहरा मुझे भाने लगा
चांदनी बिस्तर पे इतराने लगी
चांद बांहो में नज़र आने लगा
रूह पर मदहोशियां छाने लगीं
जिस्म ग़ज़लें वस्ल की गाने लगा
तुम करम फ़रमा हुये सद शुक्रिया
ख़्वाब मेरा मुझको याद आने लगा
रफ़्ता रफ़्ता यासमीं खिलने लगी
मौसमे - गुल र्इश्क़ फ़रमाने लगा
जुल़्फ की खुशबू, शगुफ़्ता लब 'कंवल'
मंज़रे - पुरकैफ़ दिखलाने लगा
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