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Ramesh Kanwal
 
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* बल खाती मछलियां हैं, सफ़र चांदनी क *
बल खाती  मछलियां  हैं,  सफ़र  चांदनी  का है
मस्ती  है  चांद  रात  है,  किस्सा  नदी  का है


दिल  में ख़्ालिश है  लब पे हंसी सावन आंख में
जो  भी  नसीब  मुझको  हुआ  सब उसी का है


तुम  कह  रहे   हो  किसकी कहानी बताओ भी
किस्सा ये  हू- ब - हू  मेरी  दीवानगी  का है


वो  बेरूख़्ाी   की    धूप  है, मैं बेबसी का गांव
मुंसिफ़   का उसको मुझको मज़ा कचहरी का है
 

तुम  हो बजि़द जो साथ निभाने पे कर लो ग़ौर
दिल  का  मुआमला  है  नहीं  दिल्लगी का है


फूलो की पंखडि़यां भी हैं तितली के पर भी  हैं
यादों  का  है  सफ़र  तो  वरक़ डायरी का है


परवरदिगार  जानता  है  उससे   छूट   कर
अब  कुछ   अजीब  हाल  मेरी जि़ंदगी का है


अंदाजे़  -  आशनार्इ  से वाकिफ़ नहीं  हूं  मैं
उसका भी लबो-लहजा 'कंवल अजनबी का है
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