* आओ तुम आकर बसा दो मेरे ख़्वाबों के *
आओ तुम आकर बसा दो मेरे ख़्वाबों के खंडर
क्या पता कब ख़्ात्म हो जाये ये सांसों का सफ़र .
दिल के आंगन मे कभी मौसम मुलाक़ातों का हो
तेरे इक स्पर्श से रौशन हों मेरे बामो-दर
मेरे दिल की घाटियों में रू-ब-रू है आजकल
तेरे मिलने की ख़् शी तुझ से बिछड़ जाने का डर
इक घड़ी भी आंख से ओझल न होने दे कभी
तू कभी मेरे भी दर्शन को तरस जाये अगर
जब दरख़्तों1 को ज़ुबां मिल जायेगी तब देखना
मौसमों के क़हर2 से चीखेंगे ये बर्गो-शजर3
मेरे मन के द्वीप में वीरानियां जलने लगीं
एक नर हैरान था, इक नारी को पहचान कर .
दस्तकें दरवाज़ा-ए--अहसास पर बैचेन हैं
और लम्हों के घरौंदों में 'कंवल है बेख़्ाबर
1. वृक्ष 2. प्रकोप 3. पेड़-पत्ते ।
|