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Ramesh Kanwal
 
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* आओ तुम आकर बसा दो मेरे ख़्वाबों के  *
आओ तुम आकर बसा दो मेरे ख़्वाबों के खंडर                                       
क्या पता कब ख़्ात्म हो जाये ये सांसों का सफ़र                               .                                                               

दिल के आंगन मे कभी मौसम मुलाक़ातों का हो                                    
तेरे इक स्पर्श से रौशन हों मेरे बामो-दर                                                                                                      

मेरे दिल की घाटियों में रू-ब-रू है आजकल                                   
तेरे मिलने की ख़् शी तुझ से बिछड़ जाने का डर                                                                                                         

इक घड़ी भी आंख से ओझल न होने दे कभी                                     
तू कभी मेरे भी दर्शन को तरस जाये अगर                                                                                              

जब दरख़्तों1 को ज़ुबां मिल जायेगी तब देखना                                
मौसमों के क़हर2 से चीखेंगे ये बर्गो-शजर3                                          


मेरे मन के द्वीप में वीरानियां जलने लगीं                     
एक नर हैरान था, इक नारी को पहचान कर                             .


दस्तकें दरवाज़ा-ए--अहसास पर बैचेन हैं                        
और लम्हों के घरौंदों में 'कंवल है बेख़्ाबर                                                                               


1. वृक्ष 2. प्रकोप 3. पेड़-पत्ते ।
 
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