* नुक़्रर्इ1 उजाले पर सुरमर्इ अंधेर *
नुक़्रर्इ1 उजाले पर सुरमर्इ अंधेरा है
यानी मेरी कि़स्मत को गर्दिशों ने घेरा है .
वक़्त ने जुदार्इ के ज़ख़्म भर दिये लेकिन
ज़ख़्म की कहानी भी वक़्त का ही फेरा है।
टूटते बिखरते इन हौसलों को समझााओ
उलझनों की शाख़्ाों पर लज़्ज़तों का डेरा है .
आने वाला सन्नाटा मसितयां उड़ा देगा
नागिनो! संभल जाओ सामने सपेरा है
मछलियों की बस्ती में कितना प्यारा मौसम है
जाल भी नहीं कोर्इ और न ही मछेरा है
आप ही सी इक मूरत फिर है दिल के मंदिर में
आप की अदाओं का दिल में फिर बसेरा है .
क्यों 'कंवल को समझे हो रात की अलामत2 तुम
वो तो एक सूरज है, चंपर्इ सवेरा है।
1. चांदी सदृष 2. चिन्ह- लक्षण
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