* ऐ यार मेरे हिज्र के जंगल को जला दे *
ऐ यार मेरे हिज्र के जंगल को जला दे
और अपनी मुलाक़ात की बरफ़ीली घटा दे .
मै कब से तसव्वुर1 के दरीचों पे खड़ा हूं
कब होगा निगाहों को मयस्सर2 तू बता दे .
मै कर्बे-जुदार्इ3 के जज़ीरों में हूं बेदम
तू क़ुर्ब4 की ख़्ाुशबू में सनी नर्म हवा दे
पहचान पुरानी है मगर भांप रहा हूं
किस चौक पे ये शख़्स निगाहों से गिरा दे .
गिरती हुर्इ दीवारे-वज़अ़दारी5 के नीचे
इन टूटते संबंधें की बुनियाद ही ढ़ा दे .
मैं वक़्त के मलबूस6 मे बदला यूं हर इक पल
अब आर्इना हर लम्हा मेरा रूप भुला दे .
ताने हुये सोया हंू 'कंवल शबनमी चादर
मुझको तो न उगते हुये सूरज का पता दे .
1. कल्पना 2. प्राप्त-उपलब्ध 3. विरह वेदना 4.समीपता
5. तरहदारी, किसी, बात को मरते दम तक एक तरह से
निबाहना 6. वस्त्र-वसन
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