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* मुक़र1 का सूरज घटाओं में था *
मुक़र1 का सूरज घटाओं में था
मेरा हाले-ख़्ास्ता2 ख़्ालाओं में था
सभी हंस रहे थे, मुझे देखकर
बिखरता हुआ मैं हवाओं में था
शिकन की तहें मेरे माथे पे थीं
कि दरपन भी ना आशनाओं में था
मै सुक़रात था चीख़ता किस तरह
सकूते-अजब5 भी दिशाओं में था
मेरे होंट पर थी लबों की तपन
मुझे चैन जु़ल्फ़ों की छावों में था .
कोर्इ शहर में था परेशां बहुत
कोर्इ शख्स बेचैन गांवाें में था
शबो-रोज़6 बिखरी हुर्इ जिं़दगी
'कंवल इससे बेहतर गुफाओं में था
1 भाग्य, 2. दुखी, 3. वृतांत, 4. अनभिज्ञ, 5. अहंकार की चुप्पी, 6. रात दिन, ;हर पलद्ध
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