* ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा काट रहे ह *
ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा काट रहे हैं
हम आज भी इक दरिया के दो पाट रहे हं .
इन शहर की गलियों मे कहां गांव के सावन
फ़व्वारों के मंज़र मेरा सर चाट रहे हं .
मौसम के बदलते ही बदल जायेंगे हम तुम
गो सच है अभी रंजो - खुशी बांट रहे हैं
अब तक न मिली नौकरी कोर्इ भी 'कंवल' को
हाथों की लकीरों के अजब ठाट रहे हं .
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