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Ramesh Kanwal
 
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* ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा काट रहे ह *
ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा काट रहे हैं                     
हम आज भी इक दरिया के दो पाट रहे हं                            .                                                       


इन शहर की गलियों मे कहां गांव के सावन                         
फ़व्वारों के मंज़र मेरा सर चाट रहे हं                             .                                                  

मौसम के बदलते ही बदल जायेंगे हम तुम                   
गो सच है अभी   रंजो - खुशी बांट रहे हैं                   



अब तक न मिली नौकरी कोर्इ भी 'कंवल' को                      
हाथों की लकीरों के अजब ठाट रहे हं                         .                                                 

****************************

                                                           

 
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