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Ramesh Kanwal
 
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* सहमी सहमी हुर्इ तस्वीर लिये बैठे ì *
सहमी सहमी हुर्इ तस्वीर लिये बैठे हैं                  
आइने खौफ़ की जागीर लिये बैठे हैं               .                                   

हसरते-जु़ल्फ़े-गिरहगीर लिये बैठे हैं                                  
नुक़्रर्इ1   यादों  की जं़जीर लिये बैठे हैं              .                                              

गर्दिशों  का   है   मुक़íर   पे   कड़ा   पहरा मगर  
 हर    क़दम   पर नर्इ तदबीर2 लिये बैठे हैंं         .                                         

अपने  हर  ख़्वाब  की  ताबीर3  ख़लिश  है   लोगो  
अपने हर ख़्वाब  की  ताबीर लिये बैठे हंै                  .                                          

तुम वहां बैठे हो क्यों मिलने का वादा करके        
हम यहां ख़्ाुशियों की तनवीर4 लिये बैठे हैं              .                                           

अब भी आती है हर इक ख़्ात से वफ़ा की ख़्ाुशबू      
हम तेरी शोख़ी-ए-तहरीर5 लिये बैठे हैं                       .                                                      


हमने भी रक्खा है इक ताजमहल कमरे में                           
हम भी एक जज़्ब-ए-तामीर6 लिये बैठे हैं                .                                                   


वस्ले-महबूब7 की बात उठी तो याद आया 'कंवल          
हम तो फूटी हुर्इ तक़दीर लिये बैठे हैं                              .                                                    


1. चाँदी सदृष 2. प्रयत्न 3. स्वप्न फल 4. रौषनी, चमक 
5. लिखावट की चपलता, मादकता 6. सृजन भाव 7. प्रियतम से मिलन।
 
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