* तुझे मैं ख्वाबों का अलबम दिखा नहीæ *
तुझे मैं ख्वाबों का अलबम दिखा नहीं पाया
कि हर वरक़1 मे झलकती थी खौफ़ की काया .
कभी तो आ के तू यादों की डायरी पढ़ ले
बिछड़ के तुझ से न अब तक मुझे क़रार आया .
यूं तैरते रहे फैले ग़मों के सन्नाटे
कि लज़्ज़तों की सदाओं को बेअसर पाया .
निगल गये हमें कुछ ऐेसे, साअतो2 के भंवर
कि मै ही उभरा, न तू ही कभी ऩजर आया .
हसीं छलावा था यौवन की ध्ूाप कुर्ब3 का लम्स4
ढ़ला जो उम्र का सूरज तो उसको होश आया .
नये लिबास पहन कर ये बे-लिबास शजर5
बहुत ही खुश हैं कि गुज़रा हुआ शबाब आया
तुम्हारे होटों पे अमृत के थे कलश लेकिन
वेा मैं ही था जो ज़माने से डर के भाग आया
1. पन्ना पृष्ठ 2. क्षणों 3. निकटता 4. स्पर्श 5. वृक्ष ।
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