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Ramesh Kanwal
 
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* जामो-सुबू1 यूं ही नहीं ठुकराये हुय *
जामो-सुबू1 यूं ही नहीं ठुकराये हुये हंै                                 
उन मस्त निगाहों के पयाम2 आये हुए हैं                                                      	                                                           


लब लाल बदख़्शां3 हैं तो आंखे हैं गि़ज़ाली4                    
यौवन के कलश नाज़ से छलकाये हुये हंै                            	                                                       


संदल5 सा बदन सुब्ह की किरने है बिखेरे               
जुल्फ़ों में शबे-मस्त6 को उलझाये हुये हंै                                   	                                                          


यादों ने तेरी मुझको दिया इज़्ने-तबस्सुम7                             
जज़्बात8 मेरी आंखो को छलकाये हुये हैं                            	                                                           


हम अपनी तबाही का गिला कर नहीं सकते                         
अंदेशों की बारात से घबड़ाये हुये हैं                                	                                                                 


अब आस है तेरी, न तेरा ग़म न तमन्ना                          
दो फूल हैं नरगिस9 के जो कुम्हलाये हुये हैं                       	                                                       


मायूस नहीं तेरे करम से ये गुनहगार             
दामन तेरे आगे ही तो फैलाये हुये हैं                                 	                                                                         


मै सुब्ह का सूरज हूं मेरा फ़र्दा10 है रौशन            
ये अब्रे-सियह11 मुझ पे अबस11 छाये हुये हंै                           	                                                           


आशिक हूं 'कंवल आम है चर्चा मेरा जग में                          
क्यों  देख    के    आइना   वो  शरमाये  हुये हंै  				                           



1. प्याला और शराब 2. संदेश 3. शोणित-लोहित 4. मृगशावक 5. चंदन 
6. मतवाली रात 7. मुस्कुराने का आदेष 8. भावना 9. नयन जैसा एक फूल 
10. आगामी काल-भविष्य 11. काले बादल 12. व्यर्थ-निरर्थक। 
 
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