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Ramesh Kanwal
 
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* जब भी मिलता है कोर्इ शख़्स अकेला म *
जब भी मिलता है कोर्इ शख़्स अकेला मुझको                        
ज़र्रा-ज़र्रा1 नजर आता है सुनहरा मुझको                     	                                                    

तुम उजालों में न दे पाये कभी साथ मेरा                            
रास आया न कभी आह अंधेरा मुझको                                   	                                                                  

़फुरकते-यार2 में आया है वो सैलाबे-हवस3                
आइना आइना हैरत से है तकता मुझको                                	                                                              

संग बख़्शी है जिसे शक्ले-हसीं4 आज़र5 ने                        
बुत परस्ती6 का सबक़7 हंस के है देता मुझको


हैफ़ सद हैफ़8 जो ख़्ाुशियों का समुंदर था कभी       
आज वह शख़्स लगा दर्द का सहरा मुझको                       	                                                         


हो   न   हो  प्यार  के  जज़्बे  का  असर  हो ये 'कंवल 
आज वह बुत  नजर  आता   है   ख़्ाुदा  सा   मुझको    	                                   



1. कण-कण 2. सखा का वियोग 3. तृप्णा-लिप्सा-लोभ का बाढ़ 
4. सुन्दर मुखड़ा 5. एक संगतराश 6. मूर्ति पूजा 7. शिक्षा 8. पश्चाताप। 
 
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