donateplease
newsletter
newsletter
rishta online logo
rosemine
Bazme Adab
Google   Site  
Bookmark and Share 
design_poetry
Share on Facebook
 
Ramesh Kanwal
 
Share to Aalmi Urdu Ghar
* ग़म तेरा मुझे अपनों का अहसास दिलाë *
ग़म तेरा मुझे अपनों का अहसास दिलाये                   
मै आज भी तुझ से हूं बहुत आस लगाये                   	                                                       

जब बात चली मेरे हसीं जुर्मे-वफ़ा की                       
इक कातिले-मासूम1 था सर अपना झुकाये                             	                                                      

सुनकर किसी बरबादे-मुहब्बत की कहानी                                 
सब हंस पड़े लेकिन मेरे आंसू निकल आये            	                                                        

आवाज़ तो दी है तुझे बेसाख़्ता लेकिन                  
गुज़रे हुये लम्हे की तरह तुम नहीं आये                              	                                                                       

खुर्शीदे-ग़मे-दहर2 की जब तेज हुर्इ धूप                       
याद आये तेरी चश्मे-करम3 के घने साये                   	                                                  

इक जज़्ब-ए- पुरकैफ़े-मुहब्बत की बिना4 पर               
इक अजनबी चेहरे को हूं महबूब बनाये                          	                                                     

अब आस है तेरी, न तेरा ग़म, न तमन्ना                      
तू ने भी अजब दिन मेरे महबूब दिखाये                   	                                                    

इक साकी-ए-महवश5 है तसव्वुर6 में 'कंवल के                
सावन की महीना है जवां अब्र7 हैं छाये                          	                                                              


1. सरल स्वभाव का हत्यारा 2. सांसरिक कष्ट का सूर्य 3. कृपा दृषिट 
4. आधार 5. चांद जैसा सुन्दर 6. कल्पना 7. बादल ।
 
Comments


Login

You are Visitor Number : 310