* पैरों में मेरे फर्ज की जं़जीर पड़ì *
पैरों में मेरे फर्ज की जं़जीर पड़ी है
ए जज़्ब-ए-दिल1 ठहर बहुत सख़्त घड़ी है
अब जन्मों के रिश्ते भी कहीं टूट न जायें
यूं अपनी वफ़ा फर्ज से इस बार लड़ी है
जुल्फों की घटा, आंख के खुम2, प्यार का बादा3
आगोश4 मे आ जाओ लिये रात बड़ी है .
तदबीर5 से जाग उठती है सोर्इ हुर्इ तक़दीर
तदबीर मुक़íर की वो खामोश कड़ी है .
इक पल की खुशी को हैं तरसते कर्इ युग से
कहते है 'कंवल उम्र-ग़मे-यार बड़ी है .
1 मन की भावना 2. शराब का मटका 3. मदिरा 4. गोद 5. उपाय, युकित।
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