* क्या कशिश थी तेरे बहाने में *
क्या कशिश थी तेरे बहाने में
लुत्फ़ आया फ़रेब खाने में .
आतिशे-गम1 न मिल सकी वरना
क्या था खूने-जिगर2 जलाने में .
जुस्तजू में तेरी हुआ हूं गुम
ये मिला मुझको दिल लगाने में .
चार तिनकों का हश्र क्या कहिये
लग गर्इ आग आशियाने में .
तेरे ग़म का भी बोझ ढो लेता
हाय मजबूर हूं ज़माने में .
वो पशेमां से हो गये सुनकर
बात क्या थी मेरे फ़साने में .
तुम 'कंवल को सता लो जी भर के
ये तो यकता3 है ग़म उठाने में .
1. दुख की आग 2. यकृत की रक्त 3. अद्वितीय ।
|