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Ramesh Kanwal
 
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* क्या कशिश थी तेरे बहाने में *
क्या कशिश थी तेरे बहाने में                   
लुत्फ़ आया फ़रेब खाने में                                  .                                                            

आतिशे-गम1 न मिल सकी वरना                     
क्या था खूने-जिगर2 जलाने में                                 .                                    

जुस्तजू  में तेरी हुआ हूं गुम                    
ये मिला मुझको दिल लगाने में                               .                                          

चार तिनकों का हश्र क्या कहिये                      
लग  गर्इ आग आशियाने में                     .                                                

तेरे ग़म का भी बोझ ढो लेता                              
हाय मजबूर हूं ज़माने में                                      .                                              

वो पशेमां से हो गये सुनकर                                          
बात क्या थी मेरे फ़साने में                                          .       
                                
तुम 'कंवल को सता लो जी भर के                     
ये तो यकता3 है ग़म उठाने में                                    .                                                        


1. दुख की आग 2. यकृत की रक्त 3. अद्वितीय ।
 
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