नींद पलकों पे धरी रहती थी
जब ख्यालों में परी रहती थी
ख्वाब जब तक थे मेरी आँखों में
शाखे-उम्मीद हरी रहती थी
एक दरिया था तेरी यादों का
दिल के सहरा में तरी रहती थी
कोई चिड़िया थी मेरे अंदर भी
जो हर इक गम से बरी रहती थी
क्या जमाना था मेरे होंटों पर
एक इक बात खरी रहती थी
एक दुनिया थी मेरी मुठ्ठी में
कोई जादू की दरी रहती थी
हैरती अब हैं सभी पैमाने
ये सुराही तो भरी रहती थी
कितने पैवंद नजर आते हैं
जिन लिबासों में जरी रहती थी
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