कितनी मुहब्बत से वो नसीहत करता है
जो मुझ से दिन - रात अदावत करता है
बाज़ आया मैं ऐसी शोहरत - वोहरत से
मेरा साया मुझ से रक़ाबत करता है
इश्क़! तुझे महफूज़ रखें अल्लाह मियाँ
सोच - समझ कर अब वो मुहब्बत करता है
शमअ बुझा कर मुझ से हवाएं कहती हैं
तू पागल ! बेकार मशक्कत करता है
मजबूरी में जंगल जाना पड़ता है
कौन खुशी से तर्के-सुकूनत करता है
क़ायद कोई और है मेरे लश्कर का
लेकिन कोई और क़यादत करता है
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