कभी उस को गले का हार करते
मुहब्बत थी तो फिर इज़हार करते
किसी की जान का आज़ार होते
किसी को जान का आज़ार करते
मज़ा कुछ और आता ज़िन्दगी में
अगर हम ज़िन्दगी दुश्वार करते
हमें ऐ काश ! ये मालूम होता
वो रुक जाता अगर इसरार करते
सफ़र में हम कभी तनहा न होते
ज़रा कुछ कम अगर रफ़्तार करते
अज़ीज़ों ने किये जो वार हम पर
मज़ा आता अगर अग़यार करते
खमोशी के सिवा क्या रास्ता था
पलट कर दोस्तों पर वार करते
हमें भी नींद आ जाती सफ़र में
अगर हम रास्ता हमवार करते
जो अपने रहनुमा बेदार होते
हमें भी नींद से बेदार करते
बिल-आखिर सौंप दीं 'आलम' कमानें
कहाँ तक दिल से हम तकरार करते
***********