बीच भँवर में रोज़ उतारा जाता है
फिर साहिल से हमें पुकारा जाता है
खुश हैं यार हमारी सादा-लौही पर
हम खुश हैं क्या इसमें हमारा जाता है
दुनिया की आदत है इस में हैरत क्या
काँच के घर पर पत्थर मारा जाता है
पहले भी वो चाँद हमारा साथी था
देखें! कितनी दूर सितारा जाता है
कबतक अपनी पलकें बंद रखोगे तुम
क्या आँखों से कोई नज़ारा जाता है ?
कब आएगा तेरा सुनहरा कल आखिर
इस चक्कर में 'आज' हमारा जाता है
अपना पीछा करता रहता हूँ 'आलम'
मुझ से आगे मेरा नज़ारा जाता है
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