इश्क़ ने फ़रहाद के परदे में पाया इन्तक़ाम। एक मुद्दत से हमारा ख़ून दामनगीर था॥ वोह मुसव्वर था कोई या आपका हुस्नेशबाब। जिसने सूरत देख ली, इक पैकरे-तसवीर था॥ ऐ शबेगोर! वो बेताबि-ए-शब हाय फ़िराक़। आज अराम से सोना मेरी तक़दीर में था॥ ****