* ऐसा नहीं कि उससे मुहब्बत नहीं रì *
ग़ज़ल
ऐसा नहीं कि उससे मुहब्बत नहीं रही
बस ये हुआ कि साथ की आदत नहीं रही
दुनिया के काम से उसे छुट्टी नहीं मिली
हमको भी उसके वास्ते फ़ुर्सत नहीं रही
कुछ उसको इस जहाँ का चलन रास आ गया
कुछ अपनी भी वो पहले- सी फ़ितरत नहीं रही
उससे कोई उमीद करें भी तो क्या करें
जिससे किसी तरह की शिकायत नहीं रही
दिल रख दिया है ताक पे हमनें निकाल कर
लो अब किसी भी किस्म की दिक्क़त नहीं रही
दीप्ति मिश्र
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