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* भगवान *
भगवान
मेरे छोटे-से मकान के
छोटे-से कमरे की
छोटी-सी अलमारी के
छोटे-से खाने में
शिव जी की एक नन्ही-सी "बटिया" है!
जिसके सामने रखा है -
एक छोटा-सा अगरबत्ती स्टैंड !
और
रामचरित-मानस की एक प्रतिलिपि !!
बस !!!
मेरे घर में मेरे भगवान के लिए-
मात्र इतना ही स्थान है !!
क्योंकि मैं
एक बड़े शहर में रहती हूँ जहाँ-
घर छोटे,आदमी छोटे
और दिल भी छोटे होते हैं !
मैं अपनें भगवान पर-
गंगाजल नहीं चढाती
इसलिए नहीं कि वो उपलब्ध नहीं
वरन इसलिए कि मुझे -
उसकी शुद्धता पर विशवास नहीं रहा !
मैं अपनें भगवान पर फूल भी नहीं चढाती
क्योंकि -
अपनें हाथों से लगाए पोधों के फूल
तोड़ने में मुझे दर्द होता है
और
दूसरों मांगने की मेरी आदत नहीं !
मैं अपने भगवान को -
न चन्दन लगाती हूँ ,न रोली,न अक्षत !
क्योंकि -
मेरे पास इस सब के लिए समय नहीं !
फिर भी -
फिर भी मेरा भगवान मुझसे रुष्ट नहीं होता
क्योंकि वो
"भगवान" है !
मैं नित्य प्रातः स्नान करके-
भगवान के आगे अगरबत्ती जलती हूँ
मूक स्वर में मानस का पाठ करती हूँ
और
आँख मूँद कर वह सब कह जाती हूँ
जिसे -
स्वप्न में भी किसी से कहने से डरती हूँ
फिर
चिंतामुक्त हो जाती हूँ !
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि -
मैं अपने भगवान से रूठ जाती हूँ ,
महीनों पूजन नहीं करती !
मेरे भगवान पर
धुल की परतें जम जाती हैं !
लेकिन फिर भी
मेरा भगवान मुझसे रुष्ट नहीं होता
हाँ रुष्ट नहीं होता
क्योंकि वह "भगवान" है
फिर -
जब कभी मेरे दुखों की गगरी भर जाती है
तब मुझे अपने भगवान की याद आती है !
मैं रोती हूँ ,गिडगिडाती हूँ
ओ रूठा ही नहीं ;
ऐसे भगवान को मानती हूँ
यूँ ही क्रम चलता रहता है
मेरा
और
मेरे भगवान का !!!!!!!!
दीप्ती मिश्र
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