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Jabir Hussain
 
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* कारवाँ लुट गया *
कारवाँ लुट गया

क़ाफ़िले मुंतशिर हो गए

तीरगी का धमाका हुआ

और

दीवार-ए-शब ढह गई


सिर्फ़ सरगोशियाँ

मेरी आँखों में

अलफ़ाज़ की

किरचियाँ भर गईं

और एहसास की

शाह रग कट गई


वक़्त

तारीख़ के गुमशुदा

गुंबदों की तरह

मुंजमिद ख़ून-ए-इंसा

बहाता रहा


वक़्त की करवटें

सो चुकीं

ज़ेहन-ए-दिल

अपनी आशुफ़्तगी खो चुका

ख़ामुशी मुज़महिल हो गई

और

अल्फ़ाज़ अपना फ़ुसूं खो चुके

जो निगह्बान थे

अहद-ए-रफ़्ता की पहचान थे

अपनी रानाइयाँ खो चुकेक़ाफ़िले मुतशिर हो गए

तीरगी का धमाका हुआ

और एहसास की

शाह रग कट गई


सिर्फ़ सरगोशियाँ

मेरी आँखों में

अल्फ़ाज़ की

किरचियाँ भर गईं


तुम निगहबान हो

अहद-ए-रफ़्ता की पहचान हो

तुम पशेमाँ रहो

तुम सवालात की तीरगी में

हरासाँ रहो


शहर-ए-आशोब में

इस घड़ी

ज़िक्रे गंग-व-जमन

अब किसे चाहिए

दावत-ए-फ़िक्र-व-फ़न

अब किसे चाहिए


कारवाँ लुट गया

काफ़िले मुंतशिर हो गए

तीरगी का धमाका हुआ

और

दीवारे शब ढह गई
*****
 
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