donateplease
newsletter
newsletter
rishta online logo
rosemine
Bazme Adab
Google   Site  
Bookmark and Share 
design_poetry
Share on Facebook
 
Zaheer Rahmati
 
Share to Aalmi Urdu Ghar
* वक्त लेकिन किसको समझाने का था *
वक्त लेकिन किसको समझाने का था
ये धमाका रेल के जाने का था.

झील में जो देखता था सूरतें
वह मुहाफिज़ आईनाखाने का था.

गिर गई थीं रास्तों की तख्तियां
खौफ यूँ खुद से बिछड़ जाने का था.

सब घुटन पंखों ने बाहर खींच ली
अब सुना माहौल घर जाने का था.

जंग वह ही पांच इंसानों की थी
मसअला अब अपने सरहाने का था.

ये हुआ फिर उसने आँखें खोलकर
वो समाँ देखा जो मर जाने का था. 

जो समंदर ने बनाया था ज़हीर
वो ही मंज़र अपने दुहराने का था.
****
 
Comments


Login

You are Visitor Number : 319