* वक्त लेकिन किसको समझाने का था *
वक्त लेकिन किसको समझाने का था
ये धमाका रेल के जाने का था.
झील में जो देखता था सूरतें
वह मुहाफिज़ आईनाखाने का था.
गिर गई थीं रास्तों की तख्तियां
खौफ यूँ खुद से बिछड़ जाने का था.
सब घुटन पंखों ने बाहर खींच ली
अब सुना माहौल घर जाने का था.
जंग वह ही पांच इंसानों की थी
मसअला अब अपने सरहाने का था.
ये हुआ फिर उसने आँखें खोलकर
वो समाँ देखा जो मर जाने का था.
जो समंदर ने बनाया था ज़हीर
वो ही मंज़र अपने दुहराने का था.
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