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* दिया भी बुझ गया है, जो हूँ मैं हूँ *
दिया भी बुझ गया है, जो हूँ मैं हूँ
यहाँ अब और क्या है, जो हूँ मैं हूँ.
वो क्या समझे मेरी पाबंदियों को
वो ये ही जानता है, जो हूँ मैं हूँ.
उसे भी क्या पता इन मौसमों से
कोई ये चाहता है, जो हूँ मैं हूँ.
बहुत खुश हूँ रवां तनहाइयों से
मुझे अब ये पता है, जो हूँ मैं हूँ.
हकीकत कुछ तो दर्याओं की भी है
समंदर सोचता है, जो हूँ मैं हूँ.
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