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Zaheer Rahmati
 
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* जितने पत्थरदिल होते हैं, घर उनका ब *
जितने पत्थरदिल होते हैं, घर उनका बन जाता है
सब को छूकर देखने वाला खुद साया बन जाता है

सच्चाई होंठों पर आकर अफसाना बन जाती है
जो आँखों के सामने आए वो सपना बन जाता है

धानी चुनरी एक हवा के झोंके से उड़ जाती है
पगडंडी से पैर जो फिसले शहर का रस्ता बन जाता है

लोग बुरे लगने लगते हैं बेवजह तारीफों से
मुझको अच्छा कहनेवाला खुद अच्छा बन जाता है

मुझको सतही कहने वालों को औकात नहीं मालूम
कब साहिल गहरा होता है कब दर्या बन जाता है.
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