ग़ज़ल..
कोई चाहत ना ख्वाब मांगेगा,
दिल मुसलसल अज़ाब मांगेगा,,
होगा कमज़र्फ़ जो यहाँ साक़ी,
वही तुझ से शराब मांगेगा,,
फिर दिले ज़ार इक तबाही को,
एक नया इज़तेराब मांगेगा,,
उस को कांटे मिलेंगे गुलशन में,
शौक़ जब भी गुलाब मांगेगा,,
हो तबीयत में जिस की खुद्दारी,
क्यूं किसी से खिताब मांगेगा,,
ए सितमगर हर इक सितम का तेरे,
"वक़्त इक दिन हिसाब मांगेगा",,
आने वाला हर एक पल ए ‘सिराज’,
एक नया इन्कलाब मांगेगा..!
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