ग़ज़ल
वफ़ा ख़ाक में दिलबरी ख़ाक में,
मिली अब मेरी हर खुशी ख़ाक में,,
करूं फिर मैं इस की जतन क्यूं भला,
के मिलनी है जब ज़िंदगी ख़ाक में,,
किसी को भी पासे वफ़ा अब नहीं,
मिली दोस्तो दोस्ती ख़ाक में,,
मिले कैसे मंज़िल भला रहरवो,
मिला दी गई रहबरी ख़ाक में,,
मेरी बे-बसी देखती रह गई,
मिली जब मेरी बेबसी ख़ाक में,,
जिसे अपने ऊपर बहुत नाज़ था,
वही मिल गई अब खुदी ख़ाक में,,
हर इक आदमी जानता है ‘सिराज’,
मिलेगा हर इक आदमी ख़ाक में..!
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