ग़ज़ल..
अपना खाना खराब कर देगा,
इश्क़ जीना अज़ाब कर देगा,,
क्या खबर थी के एक दिन मुझ को,
क़त्ल उस का शबाब कर देगा,,
जो छुपा है सितम के पर्दे में,
वक़्त उसे बे हिजाब कर देगा,,
देख लेना वो अपनी बातों से,
फिर तुझे लाजवाब कर देगा,,
वक़्त से कौन बच सका है भला,
"वक़्त एक दिन हिसाब कर देगा",,
जब वो चाहेगा एक ज़र्रे को,
देह्र में आफताब कर देगा,,
उस को मत छेड़ अपनी आँखों को,
ए ‘सिराज’ आब आब कर देगा...!
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