ग़ज़ल
नहीं कुछ भी ये तूफाने बला है,
के मेरे साथ जब मेरा खुदा है,,
वो क्या दिखलायेंगे आईना हम को,
हमारी ज़ात खुद एक आईना है,,
वो तन्हा ही लड़ेगा ज़ुल्मतों से,
जो रौशन एक मिट्टी का दीया है,,
वो दिल है लायक़े ताज़ीम यारो,
बसी जिस दिल में भी यादे खुदा है,,
ना ज़ेहमत कीजिये मेरी दवा की,
"फ़क़त ये ज़हर ही मेरी दवा है",,
वो ज़ुल्फ अपनी कहीं लेहरा रहे हैं,
जो छाई हर तरफ काली घटा है,,
मौहब्बत का हो हर सू बोल बाला,
‘सिराजे’ मुज़्तरिब की ये दुआ है....!
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